आत्मपरिचय ( नीलम रावत)
सबसे पहले सभी पाठकों को मेरा स्नेहिल नमस्कार दोस्तों आज में अपने शब्दों को अपने ब्लॉग के माध्यम से आप लोगों तक पहुंचा रही हूँ ।आज से ही मैंने अपने ब्लॉग पर लिखना आरम्भ किया है । मैं अपने परिवार के बारे में बता दू परिवार में माँ पिताजी भाई बहन दादा दादी चाचा चची सब है मेरा काफी बड़ा परिवार है लेकिन देखने में एक छोटा परिवार हैं क्योंकि सब अलग अलग जगह सेटल्ड है। सबसे पहले मैं अपने प्रिय पाठकों को अपना सूक्ष्म परिचय आत्म परिचय के माध्यम से देना चाहूंगी।।
अब मैं अपनी बात पे आती हूँ--------
मैं नीलम रावत एक देहाती अंचल में पली बढ़ी हूँ ।मैं उत्तराखण्ड राज्य के जिला चमोली के तहशील पोखरी ग्राम सिनाउँ के छोटे से भूभाग गढ़खेत की रहने वाली हूँ वर्तमान में मैं देहरादून से लिख रही हूँ ।मेरा गांव उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र में होने के कारण मुझे पहाड़ एवं गांवो से बहुत लगाव है ।सर्वप्रथम आपको अपनी शिक्षा के बारे में बता दूँ ।मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 1 से 5 तक गांव में बाल विद्या मंदिर परतोली में ग्रहण की तथा 6 से 10 तक की पढ़ाई राजकीय इण्टर कॉलेज उडामाण्डा से प्राप्त करी। और 11 व् 12 की पढ़ाई मैंने राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज गोपेश्वर से पूरी की ।जिंदगी अभी शुरू ही नहीं हुई थी कि 3 विद्यालय बदल दिए थे। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ और खेती बाड़ी हमारा मुख्य व्यव्साय में गिना जाता है । जब मैं छोटी थी तो मेरे दादाजी की बकरियां हुआ करती थी हमेशा इतवार के दिन में अपने दादाजी के साथ बकरियां चराने जंगल जाया करती थी जंगल में मुझे एक से बढ़ कर एक नजारे दीखते थे जो मुझे अपनी ओर आकर्षित करते थे।उस समय तो भले बुरे की परख भी नहीं हो पाती थी फिर भी जंगल के सुंदर सुन्दर दृश्य अलग ही नजर आते थे। बचपन से ही मुझे अपने दादाजी से बहुत लगाव था। क्योंकि बचपन का अधिकतर भाग उन्ही के साथ गुजारा है मैंने अभी भी जब मुझे समय मिलता तो मै घर में ज्यादातर अपने दादाजी के साथ ही बाते करती हूँ अब तो दादाजी भी काफी बूढ़े हो गये हैं कभी कभी तो ऐसा लगता कि8मानो वो जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर है मेरे दादाजी की उम्र 90 पर कर गयी । दोस्तों मेरे दादाजी बचपन में खूब सारी कथाएं (कहानियां) सुनाया करते थे उनमें से ज्यादातर कहानिया मुझे बहुत पसंद थी सबसे प्रिय थी सात परियों की कथा आहा दादाजी सुनाते भी तो बड़े प्यार से थे।इस प्रकार अपने सभी भाई बहनों में मैं दादाजी के काफी करीब हूँ अभी तक भी खैर अब तो मैं घर बहुत कम जाती लेकिन फिर भी हर छुट्टियों में चले जाती हूँ।हाँ दादी से भी लगाव है मुझे लेकिन दादाजी की तुलना में बहुत कम ।इस प्रकार मैंने अपना बचपन गांव में गांव की स्कूलों में पगडंडियों कभी बंजर खेतो में ही गुजारा अब भी जब मैं गांव जाती तो बचपन से जुडी हर बातें आँखों में नमी पैदा करदेती हैं । 10 वीं कक्षा तक तो गांव में ही रही लेकिन 11 12 की पढ़ाई मुझे गांव से दूर ले गयी एक अनजान शहर में जहाँ न तो कोउ रिश्तेदार न कोई दोस्त थे।बस मेरा कमरा मेरी दीदी और मेरी किताबें दिन में स्कुल शाम से और दूसरी सुबह तक बिलकुल कमरे में ।किताबों के बोझी बन गयी थी मैं तो बड़ी मुश्किल से दोस्त बनाये इस नये शहर में यहाँ मेरी दो बहुत ही करीबी दोस्त close friend रूचि और दीप्ती थे ।हमारी दोस्ती तोजो जि फ्रेश वाली थी अक्सर हम टोजो खाते थे लेकिन 12वीं पास होते ही हम फिर अलग हो गये,फिर णता कॉलेज अब मैंने राजकीय महाविद्यालय कर्णप्रयाग ज्वाइन कर लिया था एवं रूचि आने पोलटेक्निक तथा दीप्ती ने हे न ब वि वि ज्वाइन करा।
मेरी सबसे ज्यादा और दिलचस्ब यादे हैं कर्णप्रयाग से जुडी शायद ये यादे ही जिंदगी की ऐसी यादे होंगी जिन्हें मैं कभी भूल नहीं पाऊँगी जो अविस्मरणीय है।24 अगस्त 2013 को मेरा एड्मिशन कॉलेज में हुआ 15 अगस्त के बाद कॉलेज निरन्तर जारी हुआ ।रोज कॉलेज जाना क्लास में हमेशा उपस्थित होना ये हमारे सबसे अच्छे गुण थे।पहले पहले तो क्लास में सभी अंजान थे कुछ दिन बाद दोस्त बन गए और 3 सैलून तक हमारी दोस्ती कायम रही आशा है की आगे भी दोस्ती यूँ ही बरकरार रहेगी क्लास में हम मैं मनीषा पुष्प मालती साधना साथ रहे बाकि तो आते जाते रहते थे।कर्णप्रयाग कॉलेज में तो हमारी अलग ही पहचान थी हम साइंस फेकल्टी pcm के स्टूडेंट थे लईकिन कोई भी फेकल्टी के टीचर और स्टूडेंट ऐसे नहीं थे जो हमे नहीं जानते थे सब बड़ेअछे तरीके से मुझे जानते थे /हैं कैंटीन से लेकर लाइब्रेरी से लेकर ऑफिस तक सब जानते थे थे भी तो अलग ही हम सालभर क्लास अटेंड करते थे और नम्बर बहुत ही कम आते थे.कॉलेज में सबसे ज्यादा जान पहचान टीचरों से फर्स्ट ईयर में लगने वाला nss केम्प मेरी जिंदगी का सबसे यादगार केम्प रहा है इसमें मैंने हर तरीके से योगदान दिया खाना बनाने से लेकर नाच गाने से लेकर भाषण तक सब प्रतियोगिताएं में भाग लिया और सर्वश्रेष्ठ शिवरार्थियों में से एक में भी चुनी गयी वाह कितना मजेदार केम्प था।।तब से zbc बी.a. commerc सबी फेकल्टी वालो से मित्रता एवं जान पहचान हो गयी थी। इस प्रकार 1st ईयर तो काफी मजेदार रहा 2nd ईयर भी बहुत अच्छा रहा।अब 3rd ईयर अरे 3rd में तो मैंने कॉलेज के चुनाव में भी प्रतिभाग किया अध्यक्ष के लिए ये चुनाव सबसे खतरनाक साबित हुए पूरे कर्णप्रयाग में सबने साथ दिया बहुत मेहनत की सभी गांवों का भर्मण किया कॉलेज में जहाँ जहाँ से भी बच्चे आते सब जगह गये अब टी पूरा कर्णप्रयाग अपना जैसा ही लगने लगा था सारे दुकानदार सभी गलियां हर मुहल्ला मुझे जनता है कर्णप्रयाग में बच्चे से लेके बूढ़े तक सब साथ थे सबने मेरा समर्थन किया लेकिन अंत समय में चालबाज़ी काम कर गयी और में 40 वोटों से हार गई चलो कोउ नहीं जो होना था सो हुआ खूब मजा आया सभी दोस्तों ने खूब साथ दिया हारने पे कुछ दोस्त रोये भी ।अब बारी आई कॉलेज के लास्ट दिनों की सबने अलग होना वही लाइफ प्लानिंग सबके अलग अलग सपने सब अपनी मंजिल तक पहुँचने का रास्ता ढूंढने पर लगे रहते थे ।मैं और मेरी रूम पार्टनर (पपार्टनेर ही नहीं मेरी बेस्ट फ्रेंड भी है) भी रत रत को जागकर कैरियर काउंसलिंग करते थे फिर सोचते सोचते सो जाते थे फिर एग्जाम बजी खत्म हुए 13 मई को पहले तो 3,4 महीने से घर नहीं गये थे पहले घर गए 2,3 दिन घर में रहे फिर pg प्रवेश परीक्षा और b.ed की तयारी के लिए कमरे पे आगयी में कुछ दिन ही कमरे पे रही फिर मई लास्ट में मैं देहरादून आ गयी थी फिर काम दे के घर गयी घर में जरा माँ इ साथ हाथ बटाया फिर हमारी यारी रूपइया शुरू हुई फिर रूपइया भी खत्म अब एक इन कमरा खली करना था फिर गये राखी भी आयी मैं अपना सामान पोखरी ले गयी अपने चाचाजी के घर राखी ने वहीं एक दोस्त के कमरे पे रखा फिर जुलाई में मैं और पूनम चाचा की लड़की दून आगये मैअभी देहरादून ही हूँ कल श्रीनगर जाना है काउंसलिंग के लिए ।अब देखती हूँ आगे की पढ़ाई श्रीनगर से या दून से।।।।
नीलम रावत
Post a Comment