ख्वाइश तो नही मेरी किसी की हो जाने की,
मगर दिल से तुम्हे चाहूँ
इजाजत है कि नहीं,
यूँ रुसवा हो जाना किसी से फितरत तो नही,
फरेब आँखों से कर लूं जरा
इजाजत है कि नहीं,
रहती हूँ हमेशा जमाने की बंदिशों में
किसी रोज सैर दुनिया की कर लूँ
इजाजत है कि नहीं,
बंधी हूँ रिश्तों के धागों से अपनों के बंधनों में
आजाद हो जाऊं किसी रोज मैं भी
इजाजत है कि नहीं,
लिखती हमेशा जिंदगी का इक अजब दौर मैं
अब तुझपे अपनी शायरी बना लूँ
इजाजत है कि नहीं,
गाती हूँ नगमे दोस्तों के किस्सों के
कभी तुझपे इक गजल गुनगुना लूँ
इजाजत है कि नहीँ
©नीलम रावत
Neelurawat1996@gmail.com
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