मैं सच मे बदल गयी क्या

घटाओं ऐ फिजाओं सुनो
मैं सच में बदल गयी हूँ क्या,
ऐ तारों की टिमटिमाहट ऐ चमचमाती चांदनी सुनो
मैं सच में बदल गयी हूँ क्या,
ऐ फूलों की महक ऐ भवरों कि गुंगुनाहट
मैं सच में बदल गयी हूँ क्या,
ऐ ऋतुओं ऐ मौसम ऐ दिन रात सुनो
बताओ मुझे ये कि बदलते कैसे हैं,
तुम तो बदलना जानते है एक दूजे में ढलना जानते हैं,
ऐ सकपकाती लू ऐ सरसराती पवन ऐ बारिस की बूंदों सुनो
मैं सच में बदल गयी हूँ क्या, ऐ मेरे यारो सुनो ऐ मेरे दोस्तों सुनो
कोई करीबी कह गया है मुझे कि तू बदल गयी है,
अब तुम ही बताओ यारो मेरे, कैसे बदल गयी हूँ मैं
सच में मैं ही बदल गयी या उन्होंने ही नजरिया अपना बदल दिया है
मैं तो जरा लगी थी अपने अंतर्मन की विवशताओं को समझाने में ,
मैं लगी थी अपने जिंदगी के सवालातों को सुलझाने में,
वो यूँ आये और कह गए तुम बदल गये।।
मैं तो अतीत में भी ऐसे ही थी आज भी वैसे ही हूँ कल भी वैसे ही रहूंगी उनके लिए।।।
सच बताऊँ तो वो ही मुझे कुछ दिनों से खोये खोये से रहते हैं,
रातों को जागे जागे से और दिन को सोये सोये से रहते हैं
"बदलना वैसे तो फितरत नही है मेरी
पर आपने कहा तो चलो मान लेते हैं"
*नीलम रावत*

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