जीत सुनिश्चित कर दूंगी

दिल से घर मिल जाय दिल तो प्रीत सुनिश्चित कर दूँगी
मैं गुफ्तार-ऐ-इश्क में अपनी जीत सुनिश्चित कर दूंगी

तुम हिला दो बेशक महफिल को गा गा कर
मैं केवल लय से ही गीत सुनिश्चित कर दूंगी

प्रेम प्रतिष्ठा सम्मान हो सार जिसका
दुनिया की वो रीत सुनिश्चित कर दूंगी

तपिस धूप की चरम हो जहाँ
उस मरुथल में शीत सुनिश्चित कर दूंगी

कोई नवाब शहजादा क्या होगा ख्वाबों में
मैं वतन को इक दिन मनमीत सुनिश्चित कर दूंगी

झुका के सिर हार मंजूर नहीं मुझको
कटा के सिर मैं जीत सुनिश्चित कर दूंगी

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