(इल्तजा-ए-अदब:दावतनामा इशक का) ये निमंत्रण प्रेम का अब तो तुम स्वीकार करो

मेरे हो जाओ तुम या मुझ पर अधिकार करो
ये निमंत्रण प्रेम का अब तो तुम स्वीकार करो

दिल की दहलीजों पे तुम मुहब्बत का आगाज करो
तोड़ो सब बन्धनों को तुम अब ख्वाइशें परवाज करो
प्यार परोसो सौगातों में जिंदगी माला माल करो
रंग दो अपनी मुहब्बत से हमको ,तुम दिल अब गुलाल करो

बनें जनम जनम के साथी हम बस इक बार ऐतबार करो
ये निमंत्रण प्रेम का अब तो तुम स्वीकार करो

रूखी सुखी धड़कनों में पानी की बौछार भरो
मन के वीरानों को तुम अब तो गुलजार करो
खुद के जीवन पर न तुम अब कोई सवाल रखो
जीवन की राहों में अब मेरा भी खयाल रखो

पल भर भी न रुको अब न इंतजार करो
ये निमंत्रण प्रेम का अब तो तुम स्वीकार करो

प्रीत की पनाहों में इक दूजे का सम्मान करें
पहले प्रेम के गीतों का मधुरिम इक गान करें
नि संकोच हो जाये हम न खाबों में मलाल रहे
रातों दिन आठो प्रहर अब इक दूजे का खयाल रहे

खो जाओ तुम भी मुझमे, मुझसे अब तुम प्यार करो
ये निमंत्रण प्रेम का अब तो तुम स्वीकार करो

धड़कन को धड़कन में अब तो मिल जाने दें
दो दिलों की जमीन को अब हम एक हो जाने दें
दिल की दीवारों में बंद अब न कोई जज्बात रहे
धूप छाँव का सफर हमारा इक दूजे के साथ रहे

छोड़ो अब इशारे आंखों के खुल कर तुम भी इजहार करो
ये निमंत्रण प्रेम का अब तो तुम स्वीकार करो।।
@नीलम रावत

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