*ये प्रेम नहीं है व्यंग्य कोई*
ये प्रेम नहीं है व्यंग्य कोई
प्रेम है जिंदगी का अंग कोई
मत कर अट्टाहस प्रेम पे
ना लिख कोई उपहास प्रेम पे
अहसासों की कहानी प्रेम है,
जज्बातों की स्याही प्रेम है।
प्रेम करना आसान बहुत है,
प्रेम पाना आसान नहीं है।
पल दो पल के आकर्षण को
प्रेम नाम देने वालो,
ताउम्र निगाहें रखो एक पर
तो समझू मैं प्रेम है।
जिस्मों के स्पर्श को
प्रेम नाम देने वालो,
रूह से रूह जुड़ा पाओ
तो समझू मैं प्रेम है।
दूर रहकर भी प्रेम बना रहता है,
सिर्फ नजदीकियाँ प्रेम को
बरकरार नहीं रखती।
रूठना मनाना भी पहेलियां हैं प्रेम की,
हमेशा बातों की निरंतरता प्यार नहीं रखती।
जुदाइयां भी बढ़ाती हैं प्रभाव प्रेम का,
सिर्फ मुलाकातें नहीं है प्रमाण प्रेम का।
साधरणता अच्छी लगती है प्रेम में,
बनावटी प्रेम में प्रघाढ़ता नहीं होती।
प्रेम मेल है धड़कते दिलों का
प्रेम खेल है शबनमी इशारों का
प्रेम जब होता है तो शतत होता है,
प्रेम में दिन महीने साल नहीं देखे जाते।
समर्पण भाव है निश्छल प्रेम का,
कोई स्वार्थ झलके अगर ,तो वो प्रेम नहीं छलावा है।
प्रेम नासमझ हो तो पलभर में रिश्ता टूट जाता है,
प्रेम परिपक्व हो तो इतिहास रचता है।
प्रेम रश्मों की परवाह नहीं करता है,
प्रेम में कल्पनाओं का अलग संसार बसता है।
नाराजगी भी जायज हैं प्रेम में,,
हामियाँ प्रेम की गवाही नहीं होती।।
गम्भीरता भी जरूरी हैं प्रेम में,
प्रेम कहानियां हवा हवाई नहीं होती।।
©®नीलम रावत
चमोली उत्तराखण्ड
4 Comments
बहुत सुन्दर लिखा है आपने , हृदय स्पर्शी
ReplyDeleteआभार मित्र 🙏🙏
DeleteBhut khub🙏🙏🙏
ReplyDeleteआभार आपका🙏🙏
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