ये ही अंतिम महासमर है
अब आगे कोई युद्ध न होगा
खुद की खुद से जंग छिड़ी है,
निज भवन में कैद सभी हैं
मुश्किल हुई जान बचानी,
पक्ष विपक्ष सब एक हुए हैं।।
सदियों पहले से शायद
मानव से हुई बड़ी खता है
प्रकृति का ये प्रतिशोध है
किसी को कुछ भी नहीं पता।।
मित्र नहीं कोई ध्रुवी नहीं
सबकी जान पे बन आई है
प्रकृति के अपराधियों के संग
मासूमों ने भी जान गवाई है।।
बाहर निकले वो रावण है
घर बैठे सब राम हुए हैं
डॉक्टर,पुलिस,सफाईकर्मी
ये सारे हनुमान बने हैं
कोई किसी के लिए नहीं लड़ेगा
सबको अपनी जान बचानी है
कलयुग की ये लड़ाई है
घर बैठे ही जीत जानी है
तुम्हारे इस समर्पण की
कर्जदार नई पीढियां होंगी
आंखो देखा हाल सुनाने को
संजय स्वरूप मीडिया होगी।।
खुद ही कर लो अखंड प्रतिज्ञा
भीष्म नहीं आएंगे अब
खुद ही खुद के बनो सारथी
कृष्ण नहीं आएंगे अब।।
कलिंग का ये युद्ध नहीं है
की हथियार छोड़ देंगे हम
मगर निकलेंगे घर से तो
संसार छोड़ देंगे हम
जल्द दिला दे विजय हमे
ऐसा ऐसा कौन प्रबुद्ध होगा
ये ही अंतिम महासमर है
अब आगे युद्ध नहीं होगा।।
©®नीलम रावत
मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री को भेजो यह कविता बहुत लोगों को प्रेरणा देगी
ReplyDeleteजरूर कल सुबह ट्विट करूंगी🙏🙏,, धन्यवाद आपका
Deleteबहुत खूब नीलम जी। आपकी कलम ने बहुत गहरी बात कह दी है।
ReplyDelete"यहीं अंतिम महासमर है।"
अब आगे युद्ध नहीं होगा।।
सचमुच यह आर पार की लड़ाई है खुद की खुद से।
बहुत सार्थक। शुभकामनाएं। 💐
बहुत बढ़िया 👌👍👏👏👏
ReplyDeleteलिखते रहिये
बहुत खूब..!!!
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