देश विकाश मा म्येरी भी बड़ी भागीदारी च
मि पहाड़ की हिम्मतवाली स्वाभिमानी नारी च
शरीर का दगड़ा शरीर का दगड़ा भले म्येरु जीवन भी यूँ बाँज का भारों मा दबयूँ च
लेकिन नया दिन कि नई सुबेर की आस मा मेरु भी धीरज धरयूं च
ह्यून्द कु जाडू हो या चैत बैसाख कु आंधी तूफान म्येरु सब पचायूँ च
बसग्याल की कंटवास(heavy rain)और रूडी( summers)का तैला (hot) घाम ते भी म्येरु जवाब दिनयु च
कभी बौण बिठा कभी छानि पुंगडियों या त म्येरी जिंदगी की नित क्रिया च
पर यू घौर यू बौण यू पहाड़ मिते बाल बच्चों से भी प्रिय च
सुबेरी उठिक काम धाण शुरू ह्वे जांद
राती काली जुड़ी थामली पकड़ीक डांडा घास लाखड़ी चली जांद
जागदी सुबेर म्येरु घासकु भारू घोर ऐ जांदू
फिर नौनयालों ते मि स्कूल पैटान्दू
दूर को स्कूल च बड़ा बड़ा सड़कियो का मोड़
विकास का नौ पर नि च क्वी रोड़
पर म्येरी भी ठानी च बच्चा यखी पढोढ
झंगोरु कपलु खवे क ते अफसर बणोण।।
दिन भर घाम मा पुंगडियों की धाण
फिर सासु ससुरा की सेवा मा जुटी जांदू म्येरु ज्यू प्राण
म्येरी जिंदगी त अब बणी रेल च
यू काम काज त म्येरु बाया हाथ कु खेल च
पर खुश च मि की मीमा शुद्ध हवा पानी शुद्ध पर्यावरण च
मुख मोड़ी देला के बार लोग फिर भी डेई डेई मु अपणपन च।
म्येरी खैरी विपदा बजी भौत बड़ी च
पर यूँ राड़दा बांटों खण्डर घरों का समणि लगदी भौत कम च
लाचार छन सी पर लगे नई सकदा खैरी कि किले तौंकि आँखि हुईं नम च
यू सच च की पीड़ा कु हकदार क्वे कैकु नि होन्दू
पर म्येरु पीड़ा कु वहम दगड़यों मु बोलिक जरा हल्कू ह्वे जालु
पर यू टुटदा बाटों कु दुःख आजीवन यु ही मा रालु
भरी आनंदु यू बाटा घाटू देखिक ते म्येरु भी मन
आखिर घोर बौंण का दगड्या म्येरा भी त ई ही त छन
देखा अगर गौर से त सेरू ही पहाड़ हमारू च
स्याल-न्याल(आखिरकार) बौण बिठा मिते मुण्डा कु सहारू च
म्येरी व्यथा इथग बड़ी कि सात समंदर भी छोटा छन
पर ये व्यथित पहाड़ का समणि
म्येरी व्यथा के छोटी च
मि त हिकमत वाली नारी च मीमा सहन कन कि क्षमता भी भरी च
मेरा समणि कै दुःख विपदा हारी च
पर करा जतन आवा ये पहाड़ बचाण
नितर सस्ये सस्ये येन के दिन पट मरी जाण
अर हमुन शुद्ध हवा पाणी ते तरसी जाण।।
नीलम रावत
भाषा अलग है पर भाव स्पष्ट है बहुत अच्छा
ReplyDelete@harshwardhan193
बहुत ही उम्दा प्रकार की लेखन शैली च तुम्हारी ।लिखता रहया मुस्कुराते रहया
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