यात्रा श्री केदारनाथ जी की :
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारम।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
प्रिय पाठको ,
जैसा की सर्वविदित है आज बुधवार २९ अप्रैल,२०२० को मोक्षदायक पुण्य पवित्र धाम महादेव की प्रिय भूमि श्री केदारनाथ जी के कपाट सुबह ६.१० बजे मेष लग्न में मुख्य पुजारी द्वारा उचित मंत्रोच्चारण के साथ खोल दिए गए गए हैं। इसके बाद अगले छः महीने तक बाबा केदारनाथ की केदार धाम में ही पूजा अर्चना होगी। लेकिन अभी विश्व भर में कोरोना संकट के चलते पर्यटन प्रतिबंध होने के कारण इस बार श्रद्धालु इस भव्य उत्सव के साक्षी नहीं बन पाए।
केदारनाथ मंदिर
केदारनाथ मंदिर केदारखंड उत्तराखंड के पहाड़ी जिले रुद्रप्रयाग में स्थित है। केदारनाथ ग्यारवां ज्योतिर्लिंग एवं उत्तररखण्ड के चार धाम एवं पंचकेदार में भी स्थान रखता है। जलवायानुकूल अप्रैल से नवंबर तक ही यहाँ शिव के दर्शनों को लोग आते हैं ,ततपश्चात छः महीनो के लिए फिर यहाँ कपाट बंद हो जाते हैं.हैं. केदारनाथ मंदिर कत्यूरी शैली में बना मंदिर है जिसका निर्माण मन जाता है है पांडव वंश के जन्मेजय ने किया और शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। लेकिन मंदिर निर्माण के बारे में प्रत्येक इतिहासकार अलग अलग बताते हैं और कहते हिन् आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा निर्मित्त मंदिर द्वापर में बनाये गए शिव मंदिर के बगल में ही बना है।
मेरी केदार यात्रा
इस प्रकार शिव की अपार महिमा के कारण यह केदार प्रदेश अत्यंत धार्मिक एवं पवित्र है ,सौभाग्यवश अपने अब तक के सूक्ष्म जीवनकाल में मुझे भी महादेव की प्रिय भूमि श्रीकेदार के दर्शनों का लाभ हुआ है। वैसे तो भगवान के प्रति भक्तो की सच्ची आस्था ही किसी दर्शन से कम नहीं किन्तु जहां स्वयं महादेव ने कई लीलाओं की रचना करी हो उस भूमि को देखने का स्वार्थ भला किसे न हो ?? ये बात अलग है की बहुत से लोग मंदिरो को या इतिहास में त्रेता द्वापर युग में घटित घटनाओ को काल्पनिक मानते हैं और आधुनिक मंदिरों का ब्रह्म एवं ब्राह्मणवतव का निहित स्वार्थ मानते हैं ,किन्तु देवभूमि जहां स्वयं देवता भी स्वर्ग की अनुभूति करते हों ऐसे पतित पावन स्थल में जन्म लेने के कारण मेरे शरीर के कण कण में धार्मिक आस्था भी संचरित है. इसी के साथ शुरू करती हूँ मैं अपनी यात्रा की एक सूक्ष्म कहानी।
१० अक्टूबर २०१७ को हम लगभग २०-२५ दोस्तों की एक टोली [गणित विभाग ,रसायन भूगर्भ विज्ञानं एवं कुछ अन्य सनकी के लोग भी]गढ़वाल विश्वविधालय से सुबह सात बजे केदारनाथ को रवाना हुई थी ,

अब जब यात्रा दोस्तों के साथ होगी तो हंसी मजाक और बाते तो होगी ही ,बस में नाच गानों में भी कोई कस्र नहीं थी ,यात्रा के पहले दिन हमे सोनप्रयाग या गौरीकुंड तक ही पहुंचना था ,पहाड़ों के सुंदर दृश्यों का आनंद लेते हुए रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि एवं अगस्तयमुनु से गुप्तकाशी पहुंचे और गुप्तकाशी में थोड़ी देर रुके फिर आगे बड़े १ किमी चले ही थे की बस खराब हो गयी ,बहुत देर तक रुके और बहुत मस्ती करी बहुत सारे फोटोज खींचे और दोस्तों के साथ ताश पत्ते खेले
बहुत लम्बे इंतजार के बाद दूसरी बस की व्यवस्था हुई फिर हम लोग आगे बढ़े हुए सोनप्रयाग पहुंचे उस दिन वही रुके वहां पर रूम लेकर फ्रेश होक खाने की व्यवस्था कृ और शाम को पास में ही स्थित त्रियुगीनारायण के दर्शन किये जो की शिव पार्वती के विवाह स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
फिर रात को नवपस सोन प्रयाग आये वो रात तो दोस्तों के साथ खेल खेल में ही गुजर गयी थी अनलिमिटेड बातें एक दूसरे का मजाक और हंसी कुलमिलाकर दोस्तों के साथ आनंद के सबसे अच्छे पल थे वो. अगली सुबह सब तैयार हो के हम गौरीकुंड की तरफ बढ़े हमे वहां से छोटी गाड़ी का सहारा लेना पड़ा ,२०१३ की आपदा के बाद वहां अभी आवागमन में असुविधाएं हैं सोन प्रयाग से गौरी कुंड निकट होने के कारण जल्द ही पहुँच गए। गौरी कुंड का तप्त कुंड बहुत प्रसिद्ध है लेकिन आपदा में ढह गया था और वह निर्माण चल ही रहा था ,गौरी कुंड का दृश्य भी मन लुभावन है नीचे पुण्य मंदाकिनी और चगचारो और से पहाड़ों से घिरा ये स्थान अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए महत्वपूर्ण है और यहाँ पर यात्रा के वाहनों का भी अंतिम पड़ाव है
हालाँकि हैली सेवा केदारनाथ मंदिर तक उपलब्ध हैं ,किन्तु हम तो पैदल यात्री थे गौरीकुंड की कुछ पलछिन यादों को हृदय एवं कैमरे में कैद कर इस स्थान को अपनी आँखों में भर कर आगे बढ़ते गए। अब आगे १८किमी की चढाई चढ़नी थी ,खैर ये तो पता था दोस्तों के साथ १८ किमी क्या कोशों की दूरी भी हंसी मजाक में आसानी से तय हो सकती थी बस मन में भोले की भक्ति को लेकर चलते रहे उन सुरम्य घाटियों की न जाने कितनी तस्वीरें आँखों में कैद हो गयी वह सुरम्य प्रदेश अपनी प्राकृतिक सम्पदाओं का इतना धनी है की वखान के लिए हजारों काव्य भी कम पड़ जायेंगे ,शुरुवाती मार्ग में पेड़ों की अध्भुत छांव हैं अहा पंछियों की प्यारी चहचाहट दिवाना बना के रख देती है और वो पुण्य मंदाकिनी अपनी कल कल में ही कई संगीतों को जन्म देती है और सौम्य स्वरूपी स्वरों से केदार प्रदेश का गान करती है ,उन पैदल मार्गों में भी अलौकिक शक्ति होती है और जो जलधाराएं हमे मार्ग में मिलती है हमारे शरीर में एक सकारात्मक ऊर्जा का सिंचन करती और हमें महादेव के निकट पहुँचने की प्रेरणा देती है।
जब थोड़ी दूर पैदल चल के थकान महसुस होती तो वो साधुओ का और श्रद्धालुओं का बम बम भोले की हुंकार हमारे थके शरीर में नए उत्साह को जन्म देते हैं और फिर हम चलते रहते हैं। रास्तों में कई भोजन जलपान इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं जिनसे हम भोज्य खरीद कर खा सकते हैं और खुद को निर्बल होने से बचा सकते हैं और दोस्तों का जो उत्साह यात्रा के अंतिम चरण तक था वो भी लाजवाब था एक मिसाल था। न जाने कितने मनमोहक दृश्य कैद हो गए थे इस यात्रा कुछ कैमरे में एवं जहाँ तक ये आँखे पहुँच पा रही थी वो आँखों में वहां के भूस्खलन और टूट फुट से अहसास हो रहा था की गत वर्ष की आपदा में उस जगह ने बहुत बड़ी सम्पदा चुकाई होगी।जैसे जैसे ऊपर पहुंच रहे पेड़पौधों की कमी हो रही थी ,चारों ओर बुग्याल ही बुग्याल थे ,और अब हम सब दोस्तों की दो तीन टोलियां थी एक हम जो सबसे आगे थे मैं , जया, हिमानी दिव्या,अनुराग विजय मलिक सुरेंद्र यश और दिव्या का फेवरेट चित्रु और रशपाल शायद कनुप्रिया और अंकित भट्ट भी हमारे साथ थे बाकि उर्वशी सपना अवनि आँचल काजल अम्बिका मोनिका साइनी बलजीत चंदन और एक काढ़ एक साथ और अभिषेक पांडेय और चंदन सोनी एक साथ थे ,अभिषेक पांडेय यात्रा का सबसे हास्य विषय बन चुका था . इस प्रकार अनेक मनोहारी दृश्यों का आनंद लेते हुए हम शाम ५ बजे मंदिर प्रांगड़ में पहुंच चुके थे और वहां पहुंच के यश ने सबसे पहले हमारे रात की ठहरने की व्यवस्था की थी। और फिर हम सब अपने अपने ठिकाने पर चल दिए जो की एक होटल में था फिर थोड़ी देर आराम कर के हम सब फ्रेश हो के मंदिर की तरफ चल दिए मंदिर में आरती का समय हो गया था हमने भी आरती दर्शन किये और वापस होटल आ गए फिर तब तक हमारे अन्य सरे दोस्त भी पहुंच गए थे ,पूर्व रात्रि की भातिं इस रात भी बहुत मजा किया और अगली सुबह नाहा धो कर पूजा का सामान ले के लाइन में खड़े हो गए सुबह ब्रह्मा मुहूर्त में दरवाजे खुले हमने भी उस दिव्य शिवलिंग की दर्शन किये जो की एक बैल के पृष्ठ भाग के जैसा दीखता है निसंदेह सुबह पुजारियों के मंत्रोच्चारण के साथ तन मन मस्तिष्क शिवमय हो चुका था

और कुछ देर भक्ति साधना में लीन रहने हम सब वहां के सुंदर नजारों को निहारते रह गए, जब हम वहां के बारे में किसी स्थानीय व्यक्ति को पूछते तो अनेकानेक रहस्य मयी बातें हमें सुनने को मिलती फिर कुछ देर घूम के हम वापसी करते हैं. इस प्रकार जिंदगी की राहों का ये एक सबसे सुखद अनुभव था अब तक का जिसमे बहुत कुछ सिखने को मिला .. और यदि हम अपने कर्तव्यपथ पर दृढ़ हैं तो कोई भी बाधा हमें हमारी मंजिल तक जाने में रोक नहीं सकती और इस यात्रा के दौरान मार्ग में अनेक छोटे मंदिर भी मिलते जिनके बारे में अनेक रहस्य्मयी बाते भीहैं जिन्हे बताने के लिए अभी समय कम है. इसप्रकार ये केदार प्रदेश सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ के हर प्राणी में शिव का वाश है।


जैसा की सर्वविदित है आज बुधवार २९ अप्रैल,२०२० को मोक्षदायक पुण्य पवित्र धाम महादेव की प्रिय भूमि श्री केदारनाथ जी के कपाट सुबह ६.१० बजे मेष लग्न में मुख्य पुजारी द्वारा उचित मंत्रोच्चारण के साथ खोल दिए गए गए हैं। इसके बाद अगले छः महीने तक बाबा केदारनाथ की केदार धाम में ही पूजा अर्चना होगी। लेकिन अभी विश्व भर में कोरोना संकट के चलते पर्यटन प्रतिबंध होने के कारण इस बार श्रद्धालु इस भव्य उत्सव के साक्षी नहीं बन पाए।
केदारनाथ मंदिर
केदारनाथ मंदिर केदारखंड उत्तराखंड के पहाड़ी जिले रुद्रप्रयाग में स्थित है। केदारनाथ ग्यारवां ज्योतिर्लिंग एवं उत्तररखण्ड के चार धाम एवं पंचकेदार में भी स्थान रखता है। जलवायानुकूल अप्रैल से नवंबर तक ही यहाँ शिव के दर्शनों को लोग आते हैं ,ततपश्चात छः महीनो के लिए फिर यहाँ कपाट बंद हो जाते हैं.हैं. केदारनाथ मंदिर कत्यूरी शैली में बना मंदिर है जिसका निर्माण मन जाता है है पांडव वंश के जन्मेजय ने किया और शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। लेकिन मंदिर निर्माण के बारे में प्रत्येक इतिहासकार अलग अलग बताते हैं और कहते हिन् आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा निर्मित्त मंदिर द्वापर में बनाये गए शिव मंदिर के बगल में ही बना है।
मेरी केदार यात्रा
इस प्रकार शिव की अपार महिमा के कारण यह केदार प्रदेश अत्यंत धार्मिक एवं पवित्र है ,सौभाग्यवश अपने अब तक के सूक्ष्म जीवनकाल में मुझे भी महादेव की प्रिय भूमि श्रीकेदार के दर्शनों का लाभ हुआ है। वैसे तो भगवान के प्रति भक्तो की सच्ची आस्था ही किसी दर्शन से कम नहीं किन्तु जहां स्वयं महादेव ने कई लीलाओं की रचना करी हो उस भूमि को देखने का स्वार्थ भला किसे न हो ?? ये बात अलग है की बहुत से लोग मंदिरो को या इतिहास में त्रेता द्वापर युग में घटित घटनाओ को काल्पनिक मानते हैं और आधुनिक मंदिरों का ब्रह्म एवं ब्राह्मणवतव का निहित स्वार्थ मानते हैं ,किन्तु देवभूमि जहां स्वयं देवता भी स्वर्ग की अनुभूति करते हों ऐसे पतित पावन स्थल में जन्म लेने के कारण मेरे शरीर के कण कण में धार्मिक आस्था भी संचरित है. इसी के साथ शुरू करती हूँ मैं अपनी यात्रा की एक सूक्ष्म कहानी।
१० अक्टूबर २०१७ को हम लगभग २०-२५ दोस्तों की एक टोली [गणित विभाग ,रसायन भूगर्भ विज्ञानं एवं कुछ अन्य सनकी के लोग भी]गढ़वाल विश्वविधालय से सुबह सात बजे केदारनाथ को रवाना हुई थी ,
गुप्तकाशी में विश्राम |
अब जब यात्रा दोस्तों के साथ होगी तो हंसी मजाक और बाते तो होगी ही ,बस में नाच गानों में भी कोई कस्र नहीं थी ,यात्रा के पहले दिन हमे सोनप्रयाग या गौरीकुंड तक ही पहुंचना था ,पहाड़ों के सुंदर दृश्यों का आनंद लेते हुए रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि एवं अगस्तयमुनु से गुप्तकाशी पहुंचे और गुप्तकाशी में थोड़ी देर रुके फिर आगे बड़े १ किमी चले ही थे की बस खराब हो गयी ,बहुत देर तक रुके और बहुत मस्ती करी बहुत सारे फोटोज खींचे और दोस्तों के साथ ताश पत्ते खेले
जब बस खराब हो गयी थी |
बहुत लम्बे इंतजार के बाद दूसरी बस की व्यवस्था हुई फिर हम लोग आगे बढ़े हुए सोनप्रयाग पहुंचे उस दिन वही रुके वहां पर रूम लेकर फ्रेश होक खाने की व्यवस्था कृ और शाम को पास में ही स्थित त्रियुगीनारायण के दर्शन किये जो की शिव पार्वती के विवाह स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
त्रिजुगीनारायण मंदिर |
(गौरीकुंड ) |
(यहॉँ से शुरू होती श्रीकेदारनाथ धाम की चढ़ाई ) |
हम तीन |
मार्ग में पड़ने वाली प्रथम जलधारा |
विजय और बलजीत के साथ |
और कुछ देर भक्ति साधना में लीन रहने हम सब वहां के सुंदर नजारों को निहारते रह गए, जब हम वहां के बारे में किसी स्थानीय व्यक्ति को पूछते तो अनेकानेक रहस्य मयी बातें हमें सुनने को मिलती फिर कुछ देर घूम के हम वापसी करते हैं. इस प्रकार जिंदगी की राहों का ये एक सबसे सुखद अनुभव था अब तक का जिसमे बहुत कुछ सिखने को मिला .. और यदि हम अपने कर्तव्यपथ पर दृढ़ हैं तो कोई भी बाधा हमें हमारी मंजिल तक जाने में रोक नहीं सकती और इस यात्रा के दौरान मार्ग में अनेक छोटे मंदिर भी मिलते जिनके बारे में अनेक रहस्य्मयी बाते भीहैं जिन्हे बताने के लिए अभी समय कम है. इसप्रकार ये केदार प्रदेश सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ के हर प्राणी में शिव का वाश है।
विश्राम करते हुए |
केदारनाथ की महानता : केदारखंड में उद्धृत है :
"पुरातन: यथाहं वै तथा स्थानमिदं कीलयदा सृष्टि क्रियाचं मया वाई ब्रहमूर्तिना
स्थितंत्रेव सततं परब्रह्म जिगिषया
तदादिकमिदं स्थानम देवनमपि दुर्लभं"
भगवान शिव पार्वती जी से कहते हैं की जैसे मैं
सबसे प्राचीन हूँ , उसी प्रकार यह केदारखंड भी सबसे प्राचीन है। जब मैंने ब्रह्मामूर्ति धारण कर सृष्टि रचना में प्रवृत्त हुआ,तब मैंने इसी स्थान की सर्वपर्थम रचना की। उसी दिन से यह स्थान विधमान है एवं इसकी प्राप्ति देवताओ को भी दुर्लभ है।
"कथयस्वम महादेवा बिस्तरकानम: क्षेत्रकं
केदरनाम यत्रोक्तं स्वर्ग मोक्षप्रदायकम
कानि कानि च तीरथनिरवतनते तत्र नायक:
किम पुण्यं किंफलम चात्रीस्नान दाने महेशर:"
पार्वती जी एक दिन शिवजी से बोलती है की हे प्रभु मोक्षदायक केदारक्षेत्र सभी तीर्थों में क्यों उत्तम है? हे प्रभु! इस केदार क्षेत्र का महात्म्य बताओ ?
तब महादेव बोलते हैं सुनो पार्वती मुझे तुमसे भी अधिक प्रिय ये केदार क्षेत्र है।जब से ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करी तबसे मेरी भूमि यही है। जो भी प्राणी यहाँ आकर देह त्यागते हैं वे सब शिव रूप हो जाते हैं।
शंकर जी ने पार्वती को बताते हुए कहा हे देवी! जैसे पवित्रता में तुम ,देवताओ में विष्णु , नदियों में पुण्य गंगा ,पर्वतों में कैलास ,योगियों में यञवल्क्य ,भक्तों में नारद, शिलाओं में शिलग्राम अरण्यों में बदरीवन, धेनुओं में काम धेनु मनुष्यों में ब्राह्मण ब्राह्मणों में ज्ञानी, प्रियजनों में पुत्र, पदार्थों में स्वर्ण, मुनियों में शुकदेव ,सर्वज्ञों में व्यास, देशों में भारतवर्ष, शिलाओं में शालिग्राम, देवराजाओं में इंद्र, वसुओं में कुबेर,पुरियों में कशी, अप्सराओं में रम्भा,तथा गंधर्वों मेमे तुंबरू सर्वश्रेष्ठ है ,उसी प्रकार केदार क्षेत्र भी सर्वश्रेष्ठ है और हे पार्वती ! मुझे कैलाश के समान ही केदार भूमि भी प्रिय है। . इस प्रकार केदार भूमि के बारे में वेदों और पुराणों में अनेक रहस्य हैं।
Bhut khub
ReplyDeleteShukriya
DeletegAzab oNe oF mY FavRout 💛#bAljEet
ReplyDeleteThank you baljeet❤
DeleteAwsme
ReplyDeleteThank yash
DeleteBahut khoobsurat👏👏
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