
था
समा
वीरान
कल तक
आज रौनक
फिर लौट आयी
सूखे पड़े थे स्रोत
अब पानी से हैं भरे
बंजर जमीं पर देखो
अब हरियाली लौट आयी
आज आंगन में गौरया फिर
चह - चहाकर दस्तक देती
आज फिर कोयल ने राग छेड़े हैं
वृक्षों के पाटों में वो वायु का बहना
आज स्वास लेती मधुबन की लताएं
ज्येठ नमे ये बसंत का सा आगमन है
और उपवन में आज भँवरे गीत गाते हैं
तितलियाँ कलियों को लाड से ऐसे पुचकारती
जैसेकोई माँ बेटी से मानो मुददतों बाद मिली हो
एक टहनी दूसरी टहनी से मिलने को आतुर है
जैसे कोई प्रेमी युगल वियोग में वरषों से तड़पा हो
आज घटाएं धरा की तरफ मुस्कुराते हुए आ रही हैं
आज धरती बादलों के स्वागत में स्वयं ही चल पड़ी है
वाह बहना बहुत सुंदर लिखा है 👌👌
ReplyDeleteउत्तम
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है
ReplyDeleteबहुत उत्तम...
ReplyDeleteवाह। बेहतरीन। पिरामिड की शैली में नए प्रयोग के साथ शब्दों को सजाने के लिए बधाइयां..❣️🙏
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