ऐ मेरे भारत ये तेरे कैसे हालत हो रहे हैं

ऐ मेरे भारत  ये तेरे कैसे  हालत हो रहे हैं
तेरी गोद में तेरे बच्चे भूखे प्यासे सो रहे हैं 

वो जिन्होंने शहर भर के ठिकाने थे बनाये 
घर बनाने वाले थे ,जो अभागे बेघर हो रहे हैं 

कल्पनाओं के सागर उनके भी असीमित थे 
आंसुओं से अब मगर चेहरे की धूल धो रहे हैं 

बनाकर उन्होंने सड़केँ शहरों की दूरी पाटी थी 
उन्हीं सड़कों में वे अपनी किस्मत पे रो रहे हैं 

चल रहे थे  लड़ रहे थे  और आगे  बढ़ रहे थे 
हर नए क्षण में वो जीने की उम्मीदे खो रहे हैं 

चेहरे की झुर्रियों  और पांव के छालों की गवाही थी 
मेरे देश के मजदूर इक भावुक इतिहास बो रहे हैं 
नीलम रावत  



 


2 Comments

  1. महामारी के इस दौर में प्रवासी जनों के दर्द का मार्मिक वर्णन साधुवाद।

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