
सर सर बीजा निन्द से गैल्यों हुरी मुरि बगत ह्वेग्ये
पैली काटला बांज का भारा तब काफल का डाला जोला
घाम लागण से पैली हे दगड़्यो हम गौंउ मा बोड़ी ओला
दूर नि जौला भौत गैल्या जोला पलि छाला का बौण
ग्युं की कटे की बगत च भारि सर सर घौर भी औंण
ठंडा ठंडा मा जौला हम त राशिला काफल ल्योला
जरा जो बगत से कुब्जत ह्वेगी त पतरोल की गाली खोला
नौना नौनियाल अर सै सुर का बिजण से पैली हम घौर ऐ जोला
अनवाणी की रोटी अर भंगजीरुं को लूण हम दगड़ा ली जौला
फण्ड फण्ड केकु जांदी गेल्यानी मेरी आवा नजिक धौर
रूढ़ियों का दिन छन डांडा की छ्वीं च रिख बाग की डौर
नीलम रावत
वाह। बहुत सुंदर नीलम जी। अपनी पंक्तियों के माध्यम से आपने बचपन की उन यादों को जैसे एक स्मृति चित्र के रूप में उकेर दिया हो। और अपनी बोली में यह कविता लिखकर चार चांद भी लगा दिए। शुभकामनाएं।🙂💐❣️
ReplyDeleteBahut bahut abhar aapka aapki prtikriya sbl deti hain 🙏🙏🙏
Deleteभोत सुंदर एक दम प्योर पहाड़ी(उत्तराखण्डी)
ReplyDeleteएक भोत अच्छी कविता और सन्देश भी च कि हमर युवा पीढ़ी अपण भाषा दगडी जुड़नी च आप थे भोत भोत शुभकामना ����
Bahut bahut dhanyvaad aapko
ReplyDeleteWah wa👏👏
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर बचपन की यादें ताजा हो गयी 😊😊🙏
ReplyDeleteआभार महादेव कुछ इन्नी प्रयास छो
DeleteWoooow amazing.......
ReplyDeleteThanks
Deleteआभार महादेव बस कुछ इन्नी प्रयास छो
ReplyDeleteBeautiful 😍😍
ReplyDeleteकाफल | काफल एक औषधीय पेड़ | Kafal ( Myrica esculenta )
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