"चलो आज अपनी कहानी में तुम्हे अपने गांव घुमाती हूं
बनाकर शब्दों के रास्ते में तुम्हे भी गांव पहुंचाती हूं
कभी खेत खलिहान कभी ऊंचे ऊंचे पहाड़ दिखाती हूं
सुरम्य घाटियों के बीच से देहात की सैर कराती हूं
जेठ की दोपहर में आम के पेड़ की छांव से तुम्हारा परिचय करवाती हूं
तो कभी मदमस्त सुहानी शाम से तुम्हें रूबरू करवाती हूं
इस तरह में तुम्हे एक कहानी में पूरा गांव घुमाती हूं"
ऊपर लिखी पंक्तियों और तस्वीर से साफ समझ आ गया होगा की मै आगे क्या लिखने वाली हूं???
जैसा कि आज का मेरा शीर्षक है "सुकून का गांव"या "गांव का सुकून"वैसे देखा जाए तो दोनों के अर्थ अलग हो सकते हैं किन्तु अगर मै अपने व्यक्तिगत नजरिए से बताऊं तो मेरे लिए दोनों के अर्थ बहुत भिन्न नहीं है ।
सुकून का गांव अर्थात वह जगह जहां जाकर सुकून महसूस हो जरूरी नहीं वह आप का गांव ही हो कोई सी भी जगह हो सकती है जहां पर आपको असीम सुकून की अनुभूति होती होगी दूसरा है गांव का सुकून यानी कि जो तुम्हारा गांव है वहां का सुख चैन वहां कितना सुकून है किसी भी प्रकार के कोलाहल कड़वाहट से दूर जहां शांति ही शांति हो आपके गांव का सुकून है लेकिन मेरे लिए जहां असीम सुकून है वो मेरा गांव है और मेरे गांव में सुकून है इसलिए मेरे लिए दोनों वाक्यों के अर्थ एक हुए।
तो दोस्तों मैं आज इसी सुकून के गांव की बात करने जा रही हूं। मै कुछ दिन पहले शहर से गांव लौटी हूं हालांकि मेरा बचपन यहीं बीता है और मेरी छुट्टियां यहीं बितती और सबसे मुख्य बात मेरा घर ही यहीं हैं , शहरों के चकाचौंध शोर शराबे से बिल्कुल दूर जहां सिर्फ शांति ही शांति है जहां प्रकृति अपनी विभिन्न रूपों में श्रृंगार किए हुए है जहां हर सुबह चिड़ियों की च ह च हा ट हमारी आंखे मूंदति हैं जहां छोटे छोटे झरने जब पत्थरों से टकराते तो उनकी कल कल ऐसे लगती जैसे कोई नई नवेली दुल्हन रास्ते में चल रही हो और उसकी पायलों की छन छन कानों तक पहुंच रही हो
वातावरण इतना शांत और ध्वनि रहित रहता है कि मीलों दूर किसी मन्दिर में यदि घंटा नाद हो रहा हो तो वो भी हृदय में कम्पन उत्पन्न करता है ,, सुबह छत पर ताजी हवा की सरसराहट ऐसी लगती जैसे मै हिमालय के ऊपरी भागों में रह रही हूं बिल्कुल ठंडा महसूस होता है , धूप लगने से पहले जंगलों में चरवाहों और घसेनियों (घास काटने वाली महिलाएं) की आवाजें गूंजने लगती है , यहां लोगों में जो अपनापन होता है वह वास्तव में प्रशंसनीय है ,, काम हो या खाना पीना सब कुछ मिल बांट के होता है ,बड़े बुजुर्गो का दिल से सम्मान होता है और छोटो को प्यार परोसा जाता है कोई भूला भटका यदि गांव में आ जाए तो उसके साथ भी अतिथि सम व्यवहार किया जाता है ,,, कभी यदि दोपहर में किसी घाटी में जा के चिल्लाया जाए तो घाटियों की गूंज सुनाई देती है, मैंने सबसे पहले ध्वनि के प्रवर्तित होने का अनुप्रयोग यहीं किया था।। पग पग में देवी देवताओं का वास है रावल देवता हमारे क्षेत्रपाल देवता माने जाते हैं तथा भगवती राज राजेश्वरी कुल देवी समय समय पर यहां श्रद्धानुसार पूजा बन पाठ होती है,,प्राकृतिक सुषमा के साथ साथ इस गांव में प्रकृति की महत्वपूर्ण सम्पदा भी है गांव के चारों ओर अनेक छायादार और फलदार वृक्ष है जिनको लकड़ियां भी कीमती होती है,
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(फोटो साभार अमन रावत ) |
बारहमास फल तथा सब्जियां खेतों में उगाई जाती हैं ,हर शाम खेतो के किनारे जंगली जानवर ऐसे आते दिखते हैं जैसे गांव में कहीं इनके लिए भोज रखा गया है इस प्रकार गांव कोई भी हो अपनी महत्ता रखता है और शहरों की अपेक्षा हमें शुद्ध जलवायु एवम वातावरण प्रदान करता है तथा अथाह सुकून की अनुभूति होती है।।
नीलम रावत
वाह। बहुत सही कहा आपने। सचमुच गांव जैसा सुकून और कहीं नहीं है । और जहां सुकून हो वह हमारे लिए गांव से कम नहीं है। अपने अनुभवों की कलम से जो कुछ आपने लिखा पूरे पहाड़ या यूं कहें उत्तराखंड के गांवों की यहीं कहानी है। ❤️👌
ReplyDeleteजी बिल्कुल एक पहाड़वा सी ही इस परम आनन्द को जी सकता है ,, आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर नीलम सब महसूस किया है पर आपके द्वारा जो इन सब अनुभवों को शब्दो मे पिरोया गया है प्रशंसनीय 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर नीलम सब महसूस किया है पर आपके द्वारा जो इन सब अनुभवों को शब्दो मे पिरोया गया है प्रशंसनीय 👌👌👌
ReplyDeleteवाह👏👏
ReplyDeleteआभार
DeleteThanks
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण के साथ बर्णन भी इस लेख के लिए मैं शुभकामनायें देता हुँ, 😊💐💐💐💐
ReplyDeleteबहुत अच्छा।
ReplyDeleteनीलम आपने गाँव की पृष्टभूमि का अत्यंत सुंदर वर्णन किया गया है। सुना है इस बार गाँव में कोलाहल बढ़ सा गया क्योंकि इस बार बहुत से लोग शहरों से देवभूमि की ओर लौट चले हैं।
ReplyDeleteहमारे गांव में पहले जैसा माहौल है सुकून और सुकून
DeleteSukoon ka dusra naam hi pahad hai ....aapne jis tarah se apni kalam se pahad ko ek nayi pahchan di hai ... pahado or pahadiyo ka kad aur uooncha ho gya hai ....sukriya bahan .. aap esi tarah likhte rahe ...����
ReplyDeleteआभार आपका
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ReplyDeleteAti sundar. Your command over hindi and expressing your thoughts in hindi is excellent. I loved the way you have expressed the feel of the village. Your passion for this village life is clearly visible all over the blog.
ReplyDeleteKeep penning such beautiful pearls.
Thank you so much
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