(Photo: wikipedia)
हे प्रकृति के प्यारे कवि,तुम्हें नमन है ,
हे पहाड़ों के वासी कवि तुम्हें नमन है ,,,
तुम्हें नमन करती पुण्य मन्दाकिनी की लहरें ,
तुम्हें नमन करती हैं दसों दिशाएं आठों पहरेें,
तुम्हें नमन करते हैं हिमालय के हिमकण,
हे प्रकृति के चितेरे कवि तुम्हें नमन करतें
तुम्हारे कवित्त जीवन के प्रत्येक क्षण।।
तुम्हें नमन करती हैं सावन की घटाएं ,
तुम्हें नमन करती हैं मंजिरी युक्त लताएं,,
तुम्हें नमन करती हैं वो छोटी छोटी बहती जलधाराएँ,
तुम्हें नमन करती हैं घने वनों की एकांत कन्दराएँ,,
तुम्हें नमन करती हैं चरती गायों की पुकारें
तुम्हें नमन करती हैं बारिश की बौछारें
तुम्हें नमन करते हैं रसाल वृक्षों में बौरों की झुरमुट
तुम्हें नमन करते हैं चंचल मेघों के घुरमुट
तुम्हें नमन करती है बसन्त ऋतु में कोयल की कूहें
और नमन करते है बासन्ती पपीहे
हे प्रकृति के दुलारे कवि तुम्हें नमन करते हैं
तुम्हारी कविताओं के सब शीर्षक
तुम्हें नमन करते हैं तुम्हारे सूक्ष्म जीवन के
सब सुनहरे पल।।
तुम्हें नमन करती है सन 80-90 के गाँवों की रौनक
तुम्हें नमन करती है बहती पुरवाई की सरसराहट
हे प्रकृति के लाडले कवि तुम धन्य हो ,
तुम्हारा प्राकृतिक सुषमा का व्याख्यान धन्य है,
तुम्हारा श्रृंगार धन्य है ,प्रकृति के लिए
तुम्हारा प्यार धन्य है।।
©®नीलम रावत
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