जागा हे | गढ़ काव्य | नीलम रावत

                                                                                


                               

जागा हे गढ़वाली बच्याण वालो

अपणी बोली भाषा बचे ल्या

नि शरमा बच्याण म गढवाली

तुम भाषा थे सम्मान दिले द्या

अपणी बोली भाषा कु भी संविधान बणे द्या

आण वाली पीढ़ी थे भाषा कु महत्व बते द्या

स्वाणा म्वाणा साहित्य कु

 विश्वभर में व्याख्यान करि द्या

अपनी बोली का गैरा इतिहास  थे 

तुम उजागर करि द्या

जागा हे गढ्देश्यों तुम गढ़वाली बचे द्या

गढवाली भाषा कु अपणी जीभ पर रक्षा सूत्र पैरे द्या

बोली का सम्मान का वास्ता तुम श्रीकृष्ण बणी जा

मर्यादा भी बणि रौ विश्व का कुणा कुणा मा  बखान भी हो

नया नया शब्दों की माला जन नई नई पहचान भी हो

भाषा बस भाषा नि च या संस्कृति कु पैरवार भी च

रीता व्हेज्ञा जु गौं गुठयार तौं गौं की आवाज भी च।।

यूँ आखरों की पोथी पाटी तुम सम्भाली द्या रे

ये श्रृंगार ये साहित्य तुम सम्भाली द्या रे

ये दुर्लभ श्रृंगारित साहित्य तुम सम्भाली द्या रे

यूँ भैणां अणा जागर पवांणा रासों तुम सम्भाली द्या रे

असंख्य बण्यां छन गढवाली भाषा का,

तौं शब्दकोशों सम्भाली द्या रे

जागा हे गढ़वाली बच्याण वालो 

अपनी बोली भाषा बचे द्या।।

सैरा जगत मा गढसाहित्य कु परचम लहरे द्या।

©®नीलम रावत

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