पहाड़ का अन्न मापक पात्र-पाथा। यह तांबे,पीतल अथवा लकड़ी से बना होता है। एक पाथा का माप लगभग दो किलो के बराबर होता है। चार सेर का एक पाथा और 16 छटांग का एक सेर होता है। 16 पाथा के माप को दोण और 20 दोण के माप को एक खार कहते हैं। यह जानकारी मैंने गूगल से नहीं ली,बल्कि अपने पुरखों, माता-पिता,गांव के लोगों से समय-समय पर अनौपचारिक शिक्षा के तहत ग्रहण की है। आज शहरों में रहकर हमारी यह जानकारी शून्य होने की ओर अग्रसर है।
उधर, पाथा हमारी संस्कृति से गहराई तक घुला-मिला है। जागर अनुष्ठान के समय बजायी जाने वाली कांस की थाली पाथे के ऊपर रखी जाती है। पाथे पर जौ भरकर उनके ऊपर जलता दीपक रखकर उसे अनुष्ठान या किसी शुभकार्य में रखे जाने की परंपरा है। इसे द्यूल पाथो कहते हैं।
पाथा न्याय का प्रतीक है। इससे माप करते समय धोखा करना अर्थात् माप में गड़बड़ी करना बड़ा पाप और अन्याय माना जाता है। पाथे पर केंद्रित अनेक लोकोक्तियां यहां लोक में प्रचलित हैं। यथा-नातु बड़ु कि पाथु? यानी नाता बड़ा या पाथा? मतलब यह प्रश्न आकार के बजाय नाते-संबंधों को प्राथमिकता देता है। मेरु नौनु दोण नि सकदु, बीस पथा सकदु। यानी मेरा बेटा एक दोण अनाज नहीं ढो सकता, लेकिन बीस पाथा ढो सकता है। अर्थात् चालाकी या झूठ को कितना छिपाओ, वह सामने आ ही जाता है। इससे मिलती-जुलती हिन्दी की यह लोकोक्ति है-गुड़ खाए, पर गुलगुलों से परहेज़।
It is nice one.
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