आज अंतराष्ट्रीय महिला दिवस है सुबह से तमाम बधाई संदेश विभिन्न माध्यमों से प्राप्त हो रहे हैं ,काफी हंसी खुशी का माहौल बना हुआ है किंतु मन में कहीं न कहीं कुछ खयाल हैं जो कुण्ठित कर रहे हैं।
इसलिए इस महिला दिवस पर मैं भी समाज की विभिन्न वर्गों की महिलाओं के प्रति अपने विचार रखने की कोशिश कर रही हूँ।।
"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते
रमन्ते तत्र देवता।"
ऐसी विचार धारा रखने वाले
भारत देश का इतिहास यदि पलटा जाए तो हमे मिलता है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुष के साथ बराबरी का दर्जा प्राप्त था।विद्वान कहते हैं कि वैदिक काल में भी महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी ,ऋग्वैदिक ऋचाओं में उद्धरित है कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होरी थी और उन्हें अपना पति चुनने की स्वतंत्रता थी।ऋग्वेद और उपनिषद ही हमें गार्गी एवं मैत्रेयी जैसी विदुषियों के बारे में बतलाते हैं।
लेकिन कालांतर में महिलाओं की स्थितियों में काफी डगमगाहट सी हुई और उनकी आजादी एवं अधिकारों में बंदिशें लगनी शुरू हो गयी यहां तक उन्हें किसी धार्मिक अनुष्ठान में भी शामिल नहीं किया जाता था ।फिर जैन धर्म के आंदोलनों ने इन स्थिति को कई दूर तक सुधारा , लेकिन महिला समाज को बाल विवाह,सती प्रथा, पर्दा प्रथा , शाररिक दासता जैसी रूढिवादियों ने जकड़ा हुआ था।इसके बावजूद भी समाज मे महिलाएं सहित्य ,शिक्षा,धर्म और अन्य अनेक क्षेत्रों में महारथ हासिल करती रहीं हैं।
और वर्तमान भारत एक ऐसा भारत बन चुका है कि आज ऐसा कोई क्षेत्र ही नहीं है जहाँ महिलाओं ने अपना परचम न लहराया हो।
शिक्षा ,साहित्य,राजनीति, सेना ,खेल,ज्ञान -विज्ञान ,तकनीकी हर क्षेत्र मे महिलाएं कार्यरत हैं।
लेकिन आज भी जब हर क्षेत्र में महिलाएं अपने हुनर के दम पर विद्यमान हैं,तब भी महिलाओं का एक समुदाय न्याय मांगता फिरता है समाज में । जब कोई प्रसूता दम तोड़ देती कभी असप्तालों ,कभी सड़कों की राह देखते गांव की पगडंडियों में, कभी किसी बलात्कार का शिकार हो चूको बेटी की आत्मा की तृप्ति के लिए कभी दहेज में झुलसी किसी बेटी की तड़पती आत्मा के लिए।जो हमें शदियों से मिल ही नहीं पा रहा है।
अच्छा लगता है देखकर जब शोशल मीडिया में हमे महिला दिवस पर भांति भांति के बधाई सन्देश मिलते हैं किंतु उस समाज में मैं शुभकामनाओं को स्वीकार कर कब तक और कितना खुश रह सकती हूँ जिस समाज में कोई एक महिला अपनी बेटी माँ या किसी अन्य महिला के न्याय के लिए भटके , या किसी महिला को दहेज जैसे कुरीतियों के कारण समाज के द्वारा ही प्रताड़ना मिले ।
समाज में आज भी कई महिला वर्ग ऐसे हैं जिन्हें वो सम्मान शायद आज तक नहीं मिला जिसकी वो असल में हकदार हैं।
आज जब देश की कोई बेटी अंतरिक्ष पहुंच चुकी है ,कई आसमानों को छू रही हैं तब भी कई घरों में आज भी घर के बहु बेटियों के कदम घर की दहलीजों में ही बंध रखे हैं ,
आज भी सुनसान सड़के महिलाओं की अकेले आवाजाही के लिए सुरक्षित नहीं हैं।।
आखिर हमनें अपनी सोच क्यों संकुचित कर दी है ??
और क्यों किसी ने इन विषयों पर कोई ठोश कदम उठाये नहीं जा रहे हैं आखिर कितने महिला दिवस हमे न्याय की लड़ाई में मनाने पड़ेंगे??
देश में महिलाओं का सम्मान तब होगा जब हर पीड़ित को इंसाफ मिलेगा ।
हर समाज की महिलाओं को स्वछंदता मिलेगी।
©® नीलम रावत
#happyinternationalwomen'sday
बहुत खूब
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