रवांई घाटी में 30 मई का दिन एक काला दिवस था,, तिलाड़ी कांड में शहीद हुए सभी पुण्य आत्माओं को विनम्र श्रद्धांजलि🙏
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फोटो साभार :सोशल मिडिया |
यूँ तो भारत भूमि प्राचीन काल से ही वीरों के बलिदानों की भूमि रही है..हमारे महान वीरों ने अपनी माटी अपनी थाती के लिए समय समय पर अपनी वीरता का परिचय दिया और कई वीर अपनी मातृभूमि की मिट्टी के खातिर शहीद भी हो गए....
अपने हक हकूक की लड़ाई की बात करें तो उत्तराखण्ड राज्य भी वर्षों से आंदोलनों की भीम है और अपने अधिकारों के लिए यहाँ के लोगों ने भी कई आंदोलन किये , कई लोगों को बलिदान देना पड़ा ऐसी ही अपने हक हकूक के लिए हमने अपने राज्य के खातिर राज्य के अंदर कई जगह आंदोलन किये जिनमें से तिलाड़ी आंदोलन घटना उत्तराखंड इतिहास के पन्नो पर दिल दहलाने वाली भी महत्वपूर्ण बर्बर एवं शर्मशार कर देने घटना है...... .
आंदोलन के कारण :
1930 में रवांई के तिलाड़ी मैदान में टिहरी रियासत के सिपाहियों जो रक्तरंजित होली खेली उससे सम्पूर्ण मानव समाज विशेष कर रवांई की जनता सिहर गयी थी. यह कोई अचानक होने वाला आंदोलन नहीं था बल्कि सदियों से चली आ रही मानव संसाधनों तथा वनाधिकारों का आंदोलन था।रियासत द्वारा जंगलात के ममलो मे हस्तक्षेप के कारण आक्रोशित जनता यमुना किनारे स्थित तिलाड़ी के मैदान में रणनीति बनाने हेतु सभा कर रही थी...यह मसला सिर्फ जंगलात अधिकारों का ही नही वरन जनता के ऊपर थोपे जाने वाले बेवजह के करों में बढ़ोतरी और नैकरशाही,बेगार ,प्रभुसेवा आदि से भी जनता आक्रोशित हो उठी।इस आक्रोश को चिंगारी दी एक और अमानवीय घटना ने ,टिहरी के राजा नरेंद्रशाह की राजधानी में अंग्रेज गवर्नर हेली अस्पताल की नींव रखने आये,इस आयोजन में समस्त राज्य एवम बाहर से भी कई लोग आये थे।राजा नरेंद्रशाह के राजदरबार की तरफ से गवर्नर हेली के मनोरंजन के लिए गरीब लोगों को नँगा होकर तालाब में कूदने को कहा गया। इस कारण जनमानस के मन में विद्रोह की आग जलने लगी ,आखिरकार अपने हक हकूकों की रक्षा के लिए जनता आगे बढ़ी और उन्होंने रवांई पंचायत की स्थापना करी ।
आंदोलन का नेतृत्व :
इस आन्दोलन का नेतृत्व साधारण किसानों ने किया। इनमें नगाणा के हीरा सिंह, कसरु के दया राम तथा खमुण्डी गोडर के बैजराम तथा लाला राम प्रसाद थे। 1930 में इन्होंने आजाद पंचायत साथ एक समानान्तर सरकार की स्थापना भी कर डाली। नेपाल के महाराजा और उनके महामंत्री की तर्ज पर हीरा सिंह को पांच सरकार और बैज राम को तीन सरकार की उपाधि दी गई। आन्दोलन की मुख्य मांग वनों के अधिकारों की वापसी थी। 20 मई 1930 को एस०डी०एम० सुरेन्द्र दत्त शर्मा, डी०एफ०ओ० पद्मादत्त रतूड़ी ने जनता पर गोली चलाई जिसमें धूम सिंह व एक अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो गई। उत्तेजित भीड़ में से किसी बहादुर व्यक्ति ने भी गोली चलाई जिसमें एस०डी०एम० घायल हो गया। तदुपरान्त 30 मई 1930 को तिलाड़ी के मैदान में सभा चल रही थी कि रियासत के दीवान चक्रधर जुयाल के आदेश पर निहत्थे ग्रामीणों पर गोली चला दी। इस हत्याकाण्ड में अनेक ग्रामीण शहीद हुए और कई लोग गिरफ्तार किये गये उन्हें चक्रधर जुयाल ने टिहरी रियासत से बाहर के वकीलों को मुकदमा लड़ने का अधिकार नहीं दिया। लिहाजा सभी लोग दोषी पाये गये और उन्हें 15 से 20 साल के लिए जेल भेज दिया गया। बन्दी बनाये गये व्यक्तियों में 15 की मौत जेल में हो गई और उनकी लाशों को यमुना नदी में फेंक दिया गया।
दमन रवाई से बाहर भी हुआ और इस खबर को प्रकाशित
करने वाले गढ़वाली पत्र के सम्पादक विश्वम्भर दत्त चन्दोला ने
जब माफी नहीं मांगी तो दीवान चक्रधर जुयाल ने उन पर मुकदमा कायम किया।
रवांई की झूठी रिपोर्ट छापी गई है, यह घोषणा कर उन्हें
एक साल की कड़ी कैद की सजा भुगतनी पड़ी।
टिहरी का जलियावाला काण्ड :
इस हत्याकाण्ड को टिहरी का जलियावाला भी कहा जाता है; यह रक्तरंजित घटना टिहरी रियासत की दमन और जन प्रतिरोध की सबसे बड़ी घटना थी। रवांई आन्दोलन वनाधिकारों हेतू संघर्ष के साथ-साथ रियासत की दमनकारी नीति का विरोध भी था। नई वन व्यवस्था ने रवांई की जनता में व्याप्त असन्तोष को बढ़ावा दिया था। 1927-28 में जब रवांई के किसानों ने रियासत के वन विभाग से अनुरोध किया कि उनके जानवरों को चराने के अधिकार उन्हें नई वन नीति के अन्तर्गत मिलने चाहिए तो विभाग ने उनसे कहा कि "अपने जानवरों को पहाड़ से नीचे लुढ़का दो।" इसी कारण जनता के आक्रोश के कारण रवांई क्षेत्र की आजाद पंचायत अत्यधिक लोकप्रिय हो गई। जौनपुर तथा रवांई क्षेत्र के लोग तिलाडी के चन्दादोजरी नामक स्थान पर आजाद पंचायत की बराबर सभाएं करते थे। राजा को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने रियासत के भूतपूर्व दीवान पण्डित हरिकृष्ण रतूड़ी को समस्या का समाधान करने हेतु रियासत के प्रतिनिधि के रूप में आन्दोलनकारियों के पास भेजा भी था। जनता नीति में सुधार करने की मांग प्रेषित की और रतूड़ी ने उन्हें आश्वासन भी दिया। किन्तु वन विभाग और दीवान चक्रधर जयाल नहीं चाहते थे कि समझौता हो। इसी बीच डी०एफ०ओ० पद्म दत्त रतूड़ी ने आन्दोलनकारियों दयाराम, रूद्र सिंह, राम प्रसाद और जमन सिंह पर मुकदमा कर दिया। एस०डी०एम० सुरेन्द्र दत्त शर्मा तथा डी०एफ०ओ०, पद्म दत्त रतूड़ी ने उन्हें गिरफ्तार कर 26 मई 1930 को राज गढ़ी से जब उन्हें टिहरी की ओर ले जाने लगे तभी जनता ने उनका घिराव कर अपने नेताओं को छुड़ाने का प्रयास किया। इस संकुल द्वन्द्व में डी०एफ०ओ० ने जनता पर गोलियां चला दी जिसमें तीन लोग शहीद हुए और कुछ लोग बुरी तरह घायल हो गये। गोलीकाण्ड से जनता अत्यधिक उत्तेजित हो गई और उसने एस०डी०एम० को घायल कर दिया किन्तु डी०एफ०ओ० जो दीवान चक्रधर जयाल का कृपा पात्र था, पुलिस वालों के साथ घटना स्थल से सुरक्षित निकल गया। जब घटना का समाचार दीवान चक्रधर जयाल को मिला तो उसने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर युनाइटेड प्रोविसेज की सरकार से तथाकथित विद्रोहियों पर गोली चलाने की विशेष अनुमति प्राप्त कर ली। दुर्भाग्यवश उस समय टिहरी रियासत के शासक नरेन्द्र शाह यूरोप के दौरे पर थे, यह हत्याकाण्ड नहीं होता जिसमें सुन्दर लाल बहुगुणा चिपको नेता के अनुसार 12 लोग मारे गये और कई घायल हुए। सूचना विभाग, उत्तर प्रदेश का मत है कि इस हत्याकाण्ड में 200 लोग मारे गये। दीवान चक्रधर जयाल स्वय गोली चलाने के आदेश दे रहे थे। इस घटना से पूर्व जयाल ने कर्नल सुरेन्द्र सिंह को आदेश दिये थे कि बागियों को सबक सिखाओ। उन्होंने जब मना किया तो उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई और उनके स्थान पर नाथू सिंह सजवाण को रवाई भेजा गया।
रवाई हत्याकाण्ड के बाद जनता ने वाइसराय को लिखित रूप से अनुरोध किया कि दीवान चक्रधर जयाल तथा डी०एफ०ओ० पद्म रतूड़ी जिनके कारण यह हत्याकाण्ड हुआ उन्हें सजा दी जाये। ब्रिटिश गढ़वाल के लोग भी टिहरी रियासत के समर्थन में थे। उन्होंने जयाल और रतूड़ी को खूनियों की संज्ञा भी दे डाली किन्तु इसके बावजूद उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। राजा भी ब्रिटिश सरकार के समर्थन के कारण चाहते हुए भी इन हत्यारों को दण्डित नहीं कर सके।
FAQ
रवांई घाटी में किस दिन को काला दिन के नाम से जाना जाता है ?
३० नवंबर को।
उत्तराखंड की किस घटना को जलियांवाला बाग़ हत्त्याकाण्ड नाम दिया गया ?
तिलाड़ी काण्ड को.
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