इगास उत्तराखण्ड
क्या है इगास उत्सव ?
इगास बग्वाल उत्तराखंड में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार बड़ी दीपावली के ग्यारह दिन बाद मनाया जाता है ख़ास तौर पर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में यह त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को उत्साह एवं धूम धाम से मनाने के ऐतिहासिक कारण तो हैं ही किन्तु एक कारण ये भी हो सकता है की इस के बाद हमारे यहाँ( पहाड़ों में) मकर सक्रांति तक कोई त्यौहार नहीं मनाया जाता है , यानि की अंग्रेजी साल में आने वाला ये हमारा आखिरी त्यौहार है. यह त्योहार गढ़वाल क्षेत्र में इगास या कणसी बग्वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में बूढ़ बग्वाल नाम से मनाया जाता है।
क्यों मनाई जाती है इगास ?
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चीड़ के छिल्लों को भैला हाथों में लेते बच्चे |
इगास त्यौहार मनाये जाने के पीछे प्रचलित दो मान्यताएं हैं :
जिनमे से एक है कि, जब भगवन राम चौदह वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो पूरे आर्यवर्त में उनके आने की ख़ुशी में दीप प्रज्वलित किये गए हर घर, हर गली, हर नुक्क्ड़ को सजाया गया पूरे देश में जश्न मनाया गया और इस जश्न को दीपावली के त्यौहार के रूप में मनाया गया। लेकिन, कहा जाता है दुर्गम क्षेत्र होने के कारण उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में इसकी खबर लोगों को दीपावली के ग्यारह दिन बाद मिली और यहाँ के लोगों ने ग्यारह दिन बाद एकादसी को पहाड़ों में दीपावली का त्यौहार मनाया और यह त्यौहार इगास के नाम मनाया जाने लगा। जबकि त्यौहार को मनाये जाने की प्रचलित दूसरी मान्यता है कि , प्राचीन काल में जब पूरे देश में राज तंत्र था और गढ़वाल में पंवार वंश का आधिपत्य था .जब वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेना पति थे तो राजा ने माधो सिंह भंडारी को तिब्बत से युद्ध करने को भेजा था , इसी बीच दिवाली का त्योहार भी था लेकिन दिवाली तक कोई भी सैनिक वापस नहीं आ सका तो सबने सोचा की माधो सिंह एवं सैनिक युद्ध में शहीद हो गए और किसी ने भी दिवाली का त्यौहार नहीं मनाया लेकिन दीपावली के ठीक ११ दिन बाद माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों सहित तिब्बत का युद्ध जीत कर वापस आये और पूरे गढ़वाल क्षेत्र जहाँ तक भी टिहरी नरेशों का राज विस्तार था वहां वहां धूम धाम से दीपावली की जैसी धूम मनाई गयी दीप जलाये गए। भेळा घुमाये गये , झुमैलो , चांचरी लगाए / गाये जाते हैं.
कैसे मनाया जाता है इगास त्यौहार ?
उत्तराखण्ड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में इगास त्यौहार दीपावली की तरह ही बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। मिठाई /पूरी पकौड़े बांटकर शुभकानायें दी जाती हैं चीड़ के छिल्लो के भेला बनाये जाते हैं जिनके गट्ठर रामबाण या खैणु की रस्सी बनाकर या मालू की बेल की रस्सी बनाकर बांधे जाते हैं। गाय एवं बैल को जौ के आटे की गोलियां खाने को देते हैं तथा उनकी पूजा की जाती है। घर के खिड़की दरवाजों के ऊपर फूल लगाए जाते हैं।
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जौ की गोलियाँ |
रात को भैला जला कर घुमाया जाता आतिशबाजियां होती , चाँचरी और झुमैला ,लोकगीत/ लोकनृत्यों का आयोजन होता है। जो कि गढ़वाल के किसी वीर भड़ या किसी अन्य गाथाओं पर आधारित होते हैं। अन्य सभी त्यौहारों की तरह इगास भी समाजिक सौहार्द एवं संस्कृति सभ्यता को सहेजने का त्यौहार है।
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घर के दरवाजे के ऊपर फूल लगाते हुये |
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